बुधवार, 11 जून 2014

स्वस्थ भारत के लिए पीजेएसएस ने स्वास्थ्य मंत्री को लिखा पत्र


स्वास्थ्य मंत्री डॉ. हर्षवर्धन को हमारे राष्ट्रीय संयोजक आशुतोष कुमार सिंह ने पत्र भेजकर यह सुझाव दिया है कि भारत को स्वस्थ बनाने के लिए क्या-क्या किया जा सकता है। इसकी एक कॉपी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को भीे भेजी गयी। 








पत्रांक........                                                                          दिनांकः 
26:05: 2014                                                                                             

                       
सेवा में,                                                                      
डॉ हर्षवर्धन जी, स्वास्थ्य मंत्री, भारत सरकार
नई दिल्ली

     विषयः 'स्वस्थ भारत विकसित भारत' के सपने को साकार करने की दिशा में कुछ महत्वपूर्ण सुझाव
      भाई साहब प्रणाम, सर्वप्रथम हिन्दुस्तान की बागडोर संभालने के लिए स्वस्थ भारत विकसित भारत अभियान से जुड़े तमाम राष्ट्रभक्तों की ओर से आपको ढ़ेर सारी शुभकामना देता हूं। पूरे राष्ट्र को आपसे बहुत उम्मीद है। हमें भी है। इसी परिप्रेक्ष्य में देश की स्वास्थ्य व्यवस्था को लेकर उभरे अपने विचार आपके समक्ष प्रस्तुत कर रहा हूं।
      हिन्दुस्तान बीमारी के उस कगार पर खड़ा है, जहां पर एक अच्छे डॉक्टर की सख्त जरूरत है। यदि समय रहते हिन्दुस्तान के बिगड़ते स्वास्थ्य का ध्यान नहीं रखा गया तो निश्चित रूप से विकसित राष्ट्र बनने के हिन्दुस्तानियों के सपने को साकार नहीं किया जा सकेगा।
हम चाहते हैं कि देश को स्वस्थ बनाया जाए ताकि राष्ट्र विकसित बन सके
      किसी भी राज्य के विकास को समझने के लिए नागरिक-स्वास्थ्य को समझना आवश्यक होता है। नागरिकों का बेहतर स्वास्थ्य राष्ट्र की प्रगति को तीव्रता प्रदान करता है। दुनिया के तमाम विकसित देश अपने नागरिकों के स्वास्थ्य को लेकर हमेशा से चिंतनशील व बेहतर स्वास्थ्य सुविधा उपलब्ध कराने हेतु प्रयत्नशील रहे हैं, लेकिन दुर्भाग्य से अपने देश में स्वास्थ्य चिंतन न तो सरकारी प्राथमिकता में है और न ही नागरिकों की दिनचर्या में। हिन्दुस्तान में स्वास्थ्य के प्रति नागरिक तो बेपरवाह है ही, हमारी सरकारों के पास भी कोई नियोजित ढांचागत व्यवस्था नहीं है जो देश के प्रत्येक नागरिक के स्वास्थ्य का ख्याल रख सके।
      आपको तो मालूम ही होगा कि किस तरह से स्वास्थ्य के नाम पर चहुंओर लूट मची हुई है। आम जनता तन, मन व धन के साथ-साथ सुख-चैन गवां कर चौराहे पर किमकर्तव्यविमूढ़ की स्थिति में है। घर की इज्जत-आबरू को बाजार में निलाम करने पर मजबूर है। सरकार के लाख दावों के बावजूद देश का भविष्य कुपोषण का शिकार है, देश की जन्मदात्रियां रक्तआल्पता (एनिमिया) के कारण मौत की नींद सो रही हैं।
दरअसल आज हमारे देश की स्वास्थ्य नीति का ताना-बाना बीमारों को ठीक करने के इर्द-गिर्द घूम रही है। जबकि नीति निर्धारण बीमारी को खत्म करने पर केन्द्रित होनी चाहिए। एक पोलियो से मुक्ति पाकर हम फूले नहीं समा रहे हैं, जबकि इस बीच कई नई बीमारियां देश को अपने गिरफ्त में जकड़ चुकी हैं।
मुख्यतः आयुर्वेद, होमियोपैथ और एलोपैथ पद्धति से बीमारों का इलाज होता है। हिन्दुस्तान में सबसे ज्यादा एलोपैथिक पद्धति अथवा अंग्रेजी दवाइयों के माध्यम से इलाज किया जा रहा है। स्वास्थ्य क्षेत्र से जुड़े लोगों का मानना है कि अंग्रेजी दवाइयों से इलाज कराने में जिस अनुपात से फायदा मिलता है, उसी अनुपात से इसके नुकसान भी हैं। इतना ही नहीं महंगाई के इस दौर में लोगों के लिए स्वास्थ्य सुविधाओं पर खर्च कर पाना बहुत मुश्किल हो रहा है। ऐसे में बीमारी से जो मार पड़ रही है, वह तो है ही साथ में आर्थिक नुकसान भी उठाना पड़ता है। इन सभी समस्याओं पर ध्यान देने पर यह स्पष्ट हो जाता है कि स्वास्थ्य की समस्या राष्ट्र के विकास में बहुत बड़ी बाधक है।
क्या होना चाहिए
ऐसे में देश के प्रत्येक नागरिक को स्वस्थ रखने के लिए सरकारी नीति बननी चाहिए न कि बीमार को स्वस्थ करने के लिए। ऐसे उपाय पर ध्यान दिया जाना चाहिए जिससे कोई बीमार ही न हो। इस परिप्रेक्ष्य में स्वास्थ्य नीति बनाते समय सरकार को कुछ खास बिन्दुओं पर ध्यान जरूर देना चाहिए।
देश की स्वास्थ्य व्यवस्था को नागरिकों के उम्र के हिसाब से तीन भागों में विभक्त करना चाहिए। 0-25 वर्ष तक, 26-59 वर्ष तक और 60 से मृत्युपर्यन्त। शुरू के 25 वर्ष और 60 वर्ष के बाद के नागरिकों के स्वास्थ्य की पूरी व्यवस्था निःशुल्क सरकार को करनी चाहिए। जहाँ तक 26-59 वर्ष तक के नागरिकों के स्वास्थ्य का प्रश्न है तो इन नागरिकों को अनिवार्य रूप से राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना के अंतर्गत लाना चाहिए। जो कमा रहे हैं उनसे बीमा राशि का प्रिमियम भरवाना चाहिए, जो बेरोजगार है उनकी नौकरी मिलने तक उनका प्रीमियम सरकार को भरना चाहिए। 
शुरू के 25 वर्ष नागरिकों को उत्पादक योग्य बनाने का समय है। ऐसे में अगर देश का नागरिक आर्थिक कारणों से खुद को स्वस्थ रखने में नाकाम होता है तो निश्चित रूप से हम जिस उत्पादक शक्ति अथवा मानव संसाधन का निर्माण कर रहे हैं, उसकी नींव कमजोर हो जायेगी और कमजोर नींव पर मजबूत इमारत खड़ी करना संभव नहीं होता। किसी भी लोक कल्याणकारी राज्य-सरकार का यह महत्वपूर्ण दायित्व होता है कि वह अपने उत्पादन शक्ति को मजबूत करे।
अब बारी आती है 26-59 साल के नागरिकों पर ध्यान देने की। इस उम्र के नागरिक सामान्यतः कामकाजी होते हैं और देश के विकास में किसी न किसी रूप से उत्पादन शक्ति बन कर सहयोग कर रहे होते हैं। चाहे वे किसान के रूप में, जवान के रूप में अथवा किसी व्यवसायी के रूप में हों कुछ न कुछ उत्पादन कर ही रहे होते हैं। जब हमारी नींव मजबूत रहेगी तो निश्चित ही इस उम्र में उत्पादन शक्तियाँ मजबूत इमारत बनाने में सक्षम व सफल रहेंगी और अपनी उत्पादकता का शत् प्रतिशत देश हित में अर्पण कर पायेंगी। इनके स्वास्थ्य की देखभाल के लिए इनकी कमाई से न्यूनतम राशि लेकर इन्हें राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना के अंतर्गत लाने की जरूरत है। जिससे उन्हें बीमार होने की सूरत में इलाज के नाम पर एक रूपये भी अलग से खर्च नहीं करना पड़े।
अब बात करते हैं देश की सेवा कर चुके और बुढ़ापे की ओर अग्रसर 60 वर्ष की आयु पार कर चुके नागरिकों के स्वास्थ्य की। इनके स्वास्थ्य की जिम्मेदारी भी सरकार को पूरी तरह उठानी चाहिए। और इन्हें खुशहाल और स्वस्थ जीवन यापन के लिए प्रत्येक गांव में एक बुजुर्ग निवास खोलने चाहिए जहां पर गांव भर के बुजुर्ग एक साथ मिलजुल कर रह सकें और गांव के विकास में सहयोग भी दे सकें।
यह तो हुई ढांचागत सुधार की बात। कुछ और भी महत्वपूर्ण बिन्दु हैं जिसपर अमल बहुत जरूरी है।
1- प्रत्येक गाँव में सरकारी स्वास्थ्य पर्यवेक्षक की नियुक्ति हो जो गांव के स्वास्थ्य की स्थिति पर नज़र रखे।
2-प्रत्येक गाँव में सरकारी दवा की दुकान
3-प्रत्येक स्कूल में योगा शिक्षक के साथ-साथ स्वास्थ्य शिक्षक की बहाली
4-प्रत्येक गांव में वाटर फिल्टरिंग प्लांट जिससे पेय योग्य शुद्ध जल की व्यवस्था हो सके
5--हर घर-आंगन में तुलसी का पौधा लगाने हेतु नागरिकों को जागरूक करने के लिए   कैंपेन किया जाए।
6- खेल के विकास हेतु प्रत्येक गांव में व्यवस्थित प्लेग्राउंड की व्यवस्था हो
7- सभी कच्ची-पक्की सड़कों के बगल में पीपल व नीम के पेड़ लगाने की व्यवस्था हो
उपरोक्त बातों का सार यह है कि स्वास्थ्य के नाम पर किसी भी स्थिति में नागरिकों पर आर्थिक दबाव नही आना चाहिए। और इसके लिए यह जरूरी है कि देश में पूर्णरूपेण 'कैशलेस स्वास्थ्य सुविधा' उपलब्ध कराई जाए।
यदि उपरोक्त ढ़ांचागत व्यवस्था को हम नियोजित तरीके से लागू करने में सफल रहे तो निश्चित ही हम स्वस्थ भारत विकसित भारत का सपना बहुत जल्द पूर्ण होते हुए देख पायेंगे। गौरतलब है कि प्रतिभा-जननी सेवा संस्थान स्वस्थ भारत विकसित भारत अभियान पिछले तीन वर्षों से चला रही है, जिसके अंतर्गत कंट्रोल एम.एम.आर.पी कैंपेन व जेनरिक दवा लाइए पैसा बचाइए कैंपेन चलायी जा रही है।
      उपरोक्त सुझाव को देते हुए हम इस बात के लिए आश्वस्त भी हैं कि नरेन्द्र दामोदर भाई मोदी की सरकार इन सुझावों पर अमल जरूर करेगी। हमें पूर्ण विश्वास है कि 'स्वस्थ भारत विकसित भारत' के सपने को पूर्ण करने में किसी भी सूरत में अपनी सहभागिता से आप पीछे नहीं हटेंगे।
सकारात्मक उत्तर की अपेक्षा में प्रतीक्षारत

आशुतोष कुमार सिंह


राष्ट्रीय संयोजक, प्रतिभा-जननी सेवा संस्थान