शुक्रवार, 26 अक्तूबर 2012

दवाइयों की गुणवत्ता की जाँच नहीं के बराबर!

कंट्रोल एम.एम.आर.पी कैंपेन के तहत

• दवाइयों की गुणवत्ता संदेह के घेरे में
• आर.टी.आई से हुआ खुलासा

आशुतोष कुमार सिंह


दवाइयों के नाम पर किस तरह लूट मची है इसका एक और उदाहरण सामने आया है। इतनी महंगी दवाइयां खरीदने के बाद भी इस बात की कोई गारंटी नहीं हैं कि जो दवा आप खा रहे हैं वह गुणवत्ता के मानक को पूरी कर रही हो।
आर.टी.आई कार्यकर्ता अफरोज आलम साहिल ने जब नेशनल फार्मास्यूटिकल्स प्राइसिंग ऑथरिटी (एन.पी.पी.ए) से सूचना के अधिकार तहत यह जानकारी मांगी कि पूरे देश में किस जिला, राज्य में दवाइयों को रैंडम सैंपलिंग के लिए सबसे ज्यादा भेजा गया है? इस सवाल के जवाब में एन.पी.पी.ए का उत्तर चौकाने वाला है। अंग्रेजी में दिए अपने जवाब में एन.पी.पी.ए लिखता हैं ‘Most of the random sampling has been done from Delhi/ New Delhi during the current year.’ यानी इस साल रैंडम सैम्पलिंग के ज्यादातर कार्य दिल्ली और एन.सी.आर में ही कराए गए हैं। इस जवाब से कई सवाल उठते हैं। क्या पूरे देश में जो दवाइयां बेची जा रही हैं उनकी जाँच की जरूरत नहीं हैं? क्या केवल दिल्ली और एन.सी.आर के लोगों को ही गुणवत्ता परक दवाइयों की जरूरत है? 
इस तरह की लापरवाही से यह साफ-साफ दिख रहा हैं कि देश की जनता के स्वास्थ्य को लेकर सरकारी व्यवस्था पूरी तरह से अव्यवस्थित है।
ऐसे में यह अहम सवाल उठता हैं कि देश के स्वास्थ्य के साथ कब तक इस तरह से लुकाछिपी का खेल चलता रहेगा! महंगी दवाइयों से त्रस्त जनता को गुणवत्तापरक दवाइयां भी न मिले तो आखिर वो करे तो क्या करे!

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