मंगलवार, 11 सितंबर 2012

राष्ट्रीय औषध मूल्य नियंत्रण प्राधीकरण ( एन.पी.पी.ए ) के नाम खुला पत्र



आम लोगों को गुमराह न करें एन.पी.पी.ए!!!


पूरा देश जानता है कि दवाइयों के मूल्य किस तरह से दवा कंपनियां मनमाने तरीके से निर्धारित कर रही है। इन मूल्यों को मोनिटर करने की जिम्मेदारी राष्ट्रीय औषध मूल्य नियंत्रण प्राधीकरण की है। एन.पी.पी.ए के जो कार्य गिनाए गए हैं उनमें सबसे पहले ही यह कहा गया है कि डीपीसीओ के नियमों को लागु करवाना उसकी जिम्मेदारी है। 
आज दिनांक 6.09.2012 को नवभारत टाइम्स, मुम्बई के पृष्ठ संख्या 10 पर छपी एक खबर में एन.पी.पीए चेयरमैन सी.पी.सिहं के हवाले से बताया गया है कि, कुछ लोगों को लगता है कि कुछ कंपनियां लागत से काफी ज्यादा कीमत डिक्लेयर करके भारत में दवाएं लांच कर रही हैं। वे लैंड प्राइस कैसे तय करती हैं इसके बारे में हमें कुछ पता नहीं चलता।
हमें खेद हैं कि एन.पी.पी.ए के चेयरमैन आम लोगों को भरमाने का प्रयास कर रहे हैं। पिछले ढाई महीने से चलाए जा रहे कंट्रोल एम.एम.आर.पी अभियान के तहत ऐसे कई सबूत पेश किए जा चुके हैं जो यह सिद्ध करता हैं कि भारतीय कंपनियां भी डी.पी.सी.ओ. के नियमों का पालन नहीं कर रही हैं और अपने हिसाब से मूल्य तय कर रही हैं। जिससे आम लोगों को भारी आर्थिक नुक्सान हो रहा है।
एन.पी.पी.ए. के चेयरमैन श्री सी.पी.सिंह साहब को क्या अभी तक इस बात की जानकारी नहीं मिल पायी है कि किस तरह से भारतीय कंपनियां भी ज्यादा मूल्य तय करके सरकार व आम जनता को अरबों का चूना लगा रही है। अगर नहीं मालूम है तो शर्म की बात है और अगर मालूम है उसके बाद भी इस तरह का बयान दे रहे हैं तो और भी शर्म की बात है।
अंत में मैं एन.पी.पी.ए से अनुरोध करना चाहता हूं कि वह देश की जनता के हितों को ध्यान में रखकर अपनी ढुलमुल नीति से ऊपर उठे और सरकार द्वारा प्रदत अपनी शक्ति को पहचाने व उसका सही सदुपयोग करें। 

आपका अपना
आशुतोष कुमार सिंह
नेशनल को-आर्डिनेटर, प्रतिभा जननी सेवा संस्थान

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